الأحد، 16 سبتمبر 2018

(( ... والولوج و البلوج .. )) للشاعرة \ رنا كنفاني ـ سورياا


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... والولوج و البلوج .. 
أتاها بأحلام هيامها.. 
سألته.. 
من أنت.. 
أجاب.. 
أنا من كوكب الصراع.. 
وعقود الزمن الماضي.. 
أتيتك ببشرى.. 
ما يحمله فؤادي.. 
أوركادوس.. 
من مملكة ماركوزا.. 
تهيئي يا أميرة.. 
علمت البشر.. 
حكمة امرأة.. 
لاتشبه النساء.. 
قالت له.. 
يخيفني هذيان.. 
ولوعة إبحار.. 
عبر دائرةالزمن.. 
تطوف بي.. 
إلى عالم الأسحار.. 
وأنا أنسية.. 
من ماء وتراب.. 
كيف للنار.. 
أن تحتضن.. 
دون حراق.. 
أجاب.. 
وبعينيه برق الود.. 
أسير لك منذ أعوام.. 
بل من بداية الخليقة.. 
أبحث عنك... 
بين ثنايا الأنجم.. 
كنت اتجنح إليك.. 
أتحدث معك.. 
نعم... 
روحك كانت نجما.. 
يراودني... 
لوحة انهارت.. 
بين السماء... 
في المساء... 
ولادة من.. 
نفر قمري.. 
على الأرض.. 
سقطت... 
لتبارك منزلك.. 
الكائن 
في عاصمة أشواقي .. 
فهل رددت إلي.. 
وإلى عالم المجرات... 
أجابته... 
في محراب عينيك... 
رأيت صورة عني.. 
تراني أعرفك.. 
وقد كنت أحدثك... 
بروح وهيام.. 
وكيف لا... 
وأنا وعيناي... 
غائبتان... 
في سماء.. 
وبين الولوج... 
بلوج يشع بك.. 
ينثر ثوبك شعاعا.. 
يحيط بي.. 
أخلدإليك.. 
ومحاورة... 
تموج بشهب سواح.. 
همساتنا وحروفنا... 
ينثرها نجم البراق... 
أارحل معك والروح تسكنك... 
أم أبقى مكاني والروح تفارقني... 
بصوت الحب واستحلاته... 
عاشق أنت المستحيلات... 
قال لها... 
هذا البوح يليق بي... 
ومن ملوك الإنس.. 
إلى معشر الونس... 
ملك ومارد الحرب.. 
لا يهاب جيشا... 
ولا صومعة إعصار... 
فأنا وهبتك... 
عشقا وانتصارا... 
قولي نعم... 
ولنرحل... 
دون خيار... 
رنا عثمان كنفاني سوريا

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